बुधवार, 3 दिसंबर 2008
ये टीआरपी किसी दिन पुरा देश उद्वाएगी
जिस तरह इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने मुंबई बम धमाके की कवरेज की उसे देख कर ये कहना अतिशयोक्ति नही होगी की टीवी चैनल्स की टीआरपी की भूख किसी रोज देश ही उडवा डालेगी ......जी हां मुंबई की घटना को इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने टीआरपी के चक्कर में एस कदर दिखा डाला की आतंकवादी टीवी देख कर ही निशाने दागने लगे ...जाने अंजाने में मीडिया ने आतंकवादियों की मदद कर डाली...अब भी वक्त है मीडिया को कम से कम देश हित के मुद्दों का ख्याल करना चाहिए ...और जहा देश हित की बात आए वहा तो कम से कम संवेदनशीलता दिखानी चाहिए .....मीडिया को समझना चाहिए की आप ये सी चीजे दिखा कर कही उनकी मदद तो नही कर रहे ....आप जानते है की ताज देश का जन मन होटल है वहा टीवी की सुविधा भी है एसे में मीडिया के लोगो ने तनिक भी ये विचार नही किया ये कवरेज आतंकवादी भी देख रहे होंगे ....शर्मनाक इस्थिति तो तब हो गई जब इसकी आलोचना के बाद दो एक चैनल्स के संपादको ने ये कह डाला की टीवी में कैसे कम होता है ये लोग क्या जाने ....लेकिन उन्होंने ये नही सोचा की देश के बारे में सोचना उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए......देश के बड़े मीडिया समूहों को इस ओअर ध्यान देना चाहिए......
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008
कही देश संयम मंदी की चपेट में न आ जाए........!
जब भी देश में कोई आतंकी हमला होता है हमारे देश के शीर्ष नेताओ से लेकर पीएम् तक एक ही बात कहते नजर आते है की संयम से काम लेने की जरुरत है देश में लगातार बम धमाके होते जा रहे है और अभी तक बस एक ही बात कही जाती है की संयम से कम लीजिये ,धैर्य से कम लीजिए बनारस में धमाके हुए तो यही बातें कही गई ,गुलाबी नगरी जयपुर को लहूलुहान किया गया तो भी यही वाक्य ,अहमदाबाद दहल उठा तो भी यही राग आलापा गया ,देश की राजधानी दिल्ली जब थर्रा उठी तो सुर बदले राग वही रहा ......... अब देश की आर्थिक राजधानी में बम धमाके हुए है तो भी जनता को संयम से काम लेने की नसीहत दी गई पी एम साहब जिस हिसाब से भारत की जनता को संयम की जरुरत पड़ रही है ....उसके लिए भी आपको एक फंड की व्यवस्था करनी चाहिए ......जो लोगो को केवल संयमी बनाने पर खर्च किया जाए ......भारत की जनता को एसे माहोल में संयमित रहने के लिए ट्रेंड करेइसकी देख रेख के लिए एक विभाग भी बनाया जाए संयमित विभाग इसका काम केवल संयमित रखना ही होगा और हा पी एम साब ये ध्यान रखियेगा की इस विभाग का मंत्री जो बने कम से कम ओ ख़ुद तो संयमित रहे ...नही तो पता चला की अन्य विभागों की तरह ओ भी संयम खो बैठा और भांड का बंदरबांट कर बैठा तो .............मुझे तो लगता है आपने आपने कार्य कल में जीतनी नसीहते संयम रखने की दे डाली है उससे देश आर्थिक मंदी की तरह किसी दिन संयम मंदी का शिकार न बन जाए ....हां जनाब आप देखिये की यदि इसी तरह हमले होते रहे तो मंदी की डिमांड बढ जायेगी देश में ....और आने वाले दिनों में देश पर संयम की मंदी का खतरा न मडराने लगे ......लेकिन एक बात तय है जिस दिन देश की जनता ने इस मंदी का सामना किया और ......आने वाले चुनाव में आपकी तरफ़ लपक पड़ी तो पी एम साहब !आपका सेसेक्स उसी दिन नीचे आ जाएगा और धरातल पर नजर आयेंगे .....और हा चुनाव आने वाला है इस लिए जनता को सब्र और संयम का पथ पड़ते रहिये .....ध्यान रखियेगा कही एन वक्त पर जनता के संयम का बाँध न टूट पड़े ....
मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008
अबकी दीपावली पर दीप नही........
अबकी दीवाली पर दीप जलाने की जरूरत नही है इस दीवाली पर आतंक को जलाने की जरूरत है आतंकियो को जलाने की जरूरत है जिनकी वजह से लाखों माओ की गोद सुनी हो गई ,लाखों बच्चे आनाथ हो गए लाखों सुहागिनों का सुहाग छीन गए आपके और हमारे इर्द गिर्द मौजूद गद्दारों को जलाने की जरूरत है उन को जलाने की जरूरत है जो रिश्वत खोर है भ्रस्ताचारी हैराज ठाकरे जैसे देश द्रोहियों को जलाने की जरूरत है जो भाषा के नाम पर नफरत फैला रहा है दिलो को तोड़ने का काम कर रहा है देश को खंडित करने का काम कर रहा है,एसे ठेकेदारों को जलाने की जरूरत है जो धर्म के नाम पर जहर के बिज बो रहे है,उनको जलाने की जरूरत है जो लोग जाति के नाम पर समाज में दीवार खड़ी कर रहे है ,जाति के आधार पर समाज को विखण्डित करने का काम कर रहे है,वास्तव में दीपावली सही अर्थों में अंधकार रूपी बुरियो को ख़त्म कर अच्छाइयों की तरफ़ ले जाने का त्यौहार है इसलिए इस बार दीप नही समाज के एसे गद्दारों को जलाने की जरूरत है जो देश में हमेशा उथल पुथल उत्पात मचाये रहते है दिलों को जोड़ने के बजे तोड़ने का काम करते रहते है जब इस देश में दिलो को जोड़ने वालो को नही रहने दिया गया तो दिलो को तोड़ने वालो समाज को बाटने वाले इन आतातैयो को भी इस देश में रहने का कोई हक़ नही है तवी हमारे पर्व की सार्थकता है अन्यथा मगन रहिये पठाके में ,घर में कौन रोकता है ये दीपावली भी उसी तरह बीत जायेगी जैसी पिछली गुजरी थी
दीपावली:दिल नही,दीप जलाये
दीपावली एक खास पर्व है हर बार ये पर्व आता है दीप जलते है घर द्वार शहर महानगर संसार सर कुछ जगमगा जाता है चारो ओर उजाला हो जाता है बहुत गर्व के साथ लाखो के पठाखे फोड़ कर हम खुशी का इजहार कर लेते है हम कभी भी अपने अन्तरमन की ज्योति को जलाने की कोशिश नही करते हम बर्षों से दीपावली मानते है लेकिन वास्तव में आज तक हम दीपावली का वास्तविक अर्थ नही समझ पाए हैदीपावली केवल इस लिए नही है की हम सिर्फ़ दीप जलाये मीठा खाए और पठाखे जलाये आज जरूरत है एक संकल्प की जो केवल दीप जलाने का नही बल्कि दिलो को जोड़ने का भी हो समाज में उठ रही नफ़रत की दीवारों को ख़त्म करने का संकल्प लेना होगा,आज ये भी जरूरत है की हम सबकी समृद्धि की कामना करे क्योकि जब सब समृद्ध होंगे तभी हमारी समृद्धि भी होगी कई लोग लोगो को दिखने के लिए दीपावली मानते है उनके दिलो को जलाने के लिए दीप जलाते है इसलिए इस बार लोगो के दिल नही दीप जलाये साथ ही अपने दिलों में दबे अंधकार को भी भागने का प्रयास करे
सोमवार, 15 सितंबर 2008
और गांधीजी को अंग्रेजी भूल गई ...
और गांधीजी को अंग्रेजी भूल गई .... आप सोच रहे होंगे की दक्षिद अफ्रीका में वकालत करने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी कैसे भूल सकती है ओ भी महात्मा गाँधी जैसे व्यक्तित्व को लेकिन हम आपको बता दे की अगर कोई जानबूझ कर अंग्रेजी भुलवाना चाहे तो क्या कहेंगे आप जी हाँ महात्मा गाँधी ने भारत के आजाद होने के बाद एक अंग्रेज पत्रकार द्वारा अंग्रेजी में प्रश्न पूछे जाने पर जबाब देने से इंकार कर दिया और उसे हिन्दी सिखने की नसीहत दे डाली गांधीजी ने अपना आदमी भेज कर कहा की जा कर उनसे कह दो की गाँधी को अंग्रेजी भूल गई है
चंदामामा के बहाने
चंदा मामा दूर के ....चंदा मामा दूर के पुए पकाए गुड के ,अपने खाए थाली में ,बाबु के दे प्याली में ...ये ओ पंक्तिया है जिन्हें बचपन में सुनकर माँ या तो खाना खिलाती थी या फिर सुलातीं थी कितने सुनहरे दिन थे ओ ,उनको याद करने मात्र से ही मन पुलकित हो जाता है ,आभा मंडल पर एक आजीब सी मुस्कान तैरने लगती है सुनहरे पल झरने के पानी की बहती तेज़ धारा की तरह गतिमान होते है ठीक एसे ही न जाने कब बचपन गुजरा और कब हम इस भग दौड़ भरी जिंदगी के हिस्सा हो गए पता ही नही चला पहले घर छुटा फिर शहर,फिर जिला ,मंडल और अब पिछले चार सालों से प्रदेश से भी दुरी हो गई है खैर ,आप सोच रहे होंगे की आज आचानक बचपन की याद क्यों....?कल हिन्दी दिवस के अवसर पर बल पत्रिका चंदामामा के पूर्व संपादक डॉक्टर बालशौरी रेड्डी जी से मुलाकात हो गई रेड्डी साहब पुराने आदमी इतने पुराने की ओ महात्मा गाँधी से ले कर इंदिरा गाँधी ,राजीव गाँधी ,सोनिया गाँधी सब के साथ उनकी सवार्निम यादे जुड़ी है रेड्डी साहब ने जब पत्रिका का दायित्व लिया था उस समय चंदामामा की प्रसार संख्या ७०००० थी लेकिन जब वे पत्रिका छड तो उस समय यह आंकडा १६०००० पहुँच चुका था पत्रिका कभी लोकप्रिय हो गई थी आज उनसे बात करने के दौरान ,उनकी बातें सुन कर बचपन जीवंत हो गया उनसे बात करते समय उनके द्वारा सुने गई कथाओ ने मुझे आपने पुराने आतीत में धकेल दिया जहा मई आपनी दादी और दादाजी से बैठ कर कहानिया सुना करता था मुझे याद आने लगे ओ बिताये पल ,मुझे याद आने लगे मेरे दादा जी की ओ प्यारी थपकी जिसे देकर ओ मुझे अक्सर सुलाया करते थे थोडी देर के लिए ही सही रेड्डी साहब की वजह और हिन्दी दिवस की वजह से मुझे आतीत की उन स्वर्णिम यादों में जाने का मौका मिला जो शायद अब यादें ही बन कर रह जाएँगी इसलिए धन्यवाद है रेड्डी साहब को और हिन्दी दिवस को
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
देश के हालात:आज कल
कही प्रकृति का कहर .......
कही बम विस्फोट से बन गए खंडहर ही खंडहर
आख़िर कब तक जलेंगे शहर दर शहर
भारत माता कह रही हर पहर
अरे कम से कम अब तो खाओ रहम
और बंद करो ये करम
बंद करो ये करम
कही बम विस्फोट से बन गए खंडहर ही खंडहर
आख़िर कब तक जलेंगे शहर दर शहर
भारत माता कह रही हर पहर
अरे कम से कम अब तो खाओ रहम
और बंद करो ये करम
बंद करो ये करम
बेरहमो पर कैसा रहम
देश आज आतंकी गतिविधियों का ठिकाना सा बन गया है.एक के बाद एक बम धमाके हो रहें है , गुलाबी नगरी जयपुर से शुरू हुआ बम विस्फोट का सिलसिला थमने का नाम नही ले रह .लगातार कहीं से विस्फोटक वरामद हो रहें है तो कही पर बम ब्लास्ट करने की साजिशों का खुलासा हो रहा है |
इन सभी घटनाकर्मो ने कई प्रसन खड़े किए है जिस पर निश्चित रूप से गंभीरता से विचार करने की जरूरत है |एक सवाल ये भी है की आख़िर कब तक हम उन दरिंदों को मद्यप्रदेश से लेकर गुजरात की सैर करते रहेंगे जो निरीह लोगो को इस लोक से परलोक भेजने का काम करते है |आख़िर कब तक हम इस बात का आनुसरन करते रहेंगे की सौ अपराधी भले ही बच जाए लेकिन एक बेगुनाह को सजा नही होनी चाहिए |ये बात उस समय तक ही अच्छी लगती है जब आतंरिक अपराध की बात आती है लेकिन जब आए दिन सैकड़ों लोगो को मौत की घाट उतरा जा रह हो ,बेगुनाहों की लाशे बिछायी जा रही हो ,वहा इस सोच को बदलने की जरूरत आन पड़ती है |एसे में ये कहा तक वाजिब है की हजारो लोगो को की जान लेने वाले इन आतातियो को हम सिर्फ़ इस लिए जेल में बैठकर पाले की उन पर अभी आरोप सिध्द नही हुए है|यह कहा तक उचित है की एसे आतंकियो को सिर्फ़ इसलिए पाला पोसा जाए की आदालत का फ़ैसला आने के बाद ही उन पर कोई कार्रवाई की जायेगी |इसी दौरान एक दिन एसा आएगा की येही आतंकी जेल में बैठे बैठे आतंकी वारदातों को अंजाम देंगे ही साथ ही कही फ़िर प्लेन हाइजैक करा कर आपनी रिहाई का रास्ता ख़ुद बा ख़ुद तैयार कर लेंगे और फ़िर कोई नेता प्लेन में फंसे लोगों की दुहाई दे कर कंधार जैसे किसी हवाई अड्डे पर बड़े ही सम्मान के साथ आतंकियो को विदा कर दे तो कोई आश्चर्य नही|एसे में देश के न्यायालय ,पुलिस के पास मुक्दार्सक बन्ने के सिवाय कोई चारा नही रह जाएगा |कम से कम पिछले रिकार्डो के आधार पर ये अनुमान लगना कही से लेकर कही तक अनुचित नही है |
इस देश की राजधानी में एक बिकर गैंग का सरगना इनामी बदमाश ओमप्रकाश उर्फ़ बनती को पुलिस इन्कोउन्टर में केवल इस बिनाद पर मार दिया जाता है की वह न केवल मोटर साइकिल छीनता था बल्कि मोटर साइकिल मालिक को मौत के घाट भी उतार देता था ,उसका पुरे सहर में खौफ था तो सफ़दर नागौरी ,शाहबाज ,मंसूरी जैसे लोगो को क्यो नही मारा जा सकता जिनका आतंक चहुओर है |जिनका खौफ पुरे देश में है | आख़िर जब बनती का आपराध इतना गंभीर है तो इन आतंकियो का क्यो नही ,आख़िर किसका गुनाह बड़ा है,ये सोंचना होंगा |मेरा आशय ये कतई नही की बनती को मर कर पुलिस ने गलत किया ,बल्कि यह सराहनीय कदम है हर अपराधी के साथ यही सलूक होना चाहिए ,लेकिन हर अपराधी के साथ |मेरे कहने का मतलब ये है की बनती से भी बदतर सलूक तो उनके साथ करना चाहिए जिनके सिर पर आतंक का भुत छाया हो |आख़िर हम इन आतंकियो की गुनाही बेगुनाही क्यों देंखे जो बम बिछाते समय तनिक भी ये नही सोंचते की मरने वाला कौन है ,उसे वे क्यो मारना चाहते है |उनका मकसद तो सिर्फ़ दहशत पैदा करना है ,देश के अमन कां को बिगड़ना है |
इसलिए अब जरूरत है की इस बात पर गंभीरता से विचार किया जाए और आतंकियो का जखीरा जेल में बटोरना छोड़ दे |नही तो आने वाला समय बहुत ही खतरनाक होगा और ये आतंकी जेल को ही एक ठिकाने के रूप में तब्दील कर लेंगे |
मेरे ये विचार कई लोगो को निरर्थक लग सकते है,इससे सहमत होना न होना उनका अपना मात है लेकिन व्यावहारिक स्तर पर सोचना जरूरी है ....
इन सभी घटनाकर्मो ने कई प्रसन खड़े किए है जिस पर निश्चित रूप से गंभीरता से विचार करने की जरूरत है |एक सवाल ये भी है की आख़िर कब तक हम उन दरिंदों को मद्यप्रदेश से लेकर गुजरात की सैर करते रहेंगे जो निरीह लोगो को इस लोक से परलोक भेजने का काम करते है |आख़िर कब तक हम इस बात का आनुसरन करते रहेंगे की सौ अपराधी भले ही बच जाए लेकिन एक बेगुनाह को सजा नही होनी चाहिए |ये बात उस समय तक ही अच्छी लगती है जब आतंरिक अपराध की बात आती है लेकिन जब आए दिन सैकड़ों लोगो को मौत की घाट उतरा जा रह हो ,बेगुनाहों की लाशे बिछायी जा रही हो ,वहा इस सोच को बदलने की जरूरत आन पड़ती है |एसे में ये कहा तक वाजिब है की हजारो लोगो को की जान लेने वाले इन आतातियो को हम सिर्फ़ इस लिए जेल में बैठकर पाले की उन पर अभी आरोप सिध्द नही हुए है|यह कहा तक उचित है की एसे आतंकियो को सिर्फ़ इसलिए पाला पोसा जाए की आदालत का फ़ैसला आने के बाद ही उन पर कोई कार्रवाई की जायेगी |इसी दौरान एक दिन एसा आएगा की येही आतंकी जेल में बैठे बैठे आतंकी वारदातों को अंजाम देंगे ही साथ ही कही फ़िर प्लेन हाइजैक करा कर आपनी रिहाई का रास्ता ख़ुद बा ख़ुद तैयार कर लेंगे और फ़िर कोई नेता प्लेन में फंसे लोगों की दुहाई दे कर कंधार जैसे किसी हवाई अड्डे पर बड़े ही सम्मान के साथ आतंकियो को विदा कर दे तो कोई आश्चर्य नही|एसे में देश के न्यायालय ,पुलिस के पास मुक्दार्सक बन्ने के सिवाय कोई चारा नही रह जाएगा |कम से कम पिछले रिकार्डो के आधार पर ये अनुमान लगना कही से लेकर कही तक अनुचित नही है |
इस देश की राजधानी में एक बिकर गैंग का सरगना इनामी बदमाश ओमप्रकाश उर्फ़ बनती को पुलिस इन्कोउन्टर में केवल इस बिनाद पर मार दिया जाता है की वह न केवल मोटर साइकिल छीनता था बल्कि मोटर साइकिल मालिक को मौत के घाट भी उतार देता था ,उसका पुरे सहर में खौफ था तो सफ़दर नागौरी ,शाहबाज ,मंसूरी जैसे लोगो को क्यो नही मारा जा सकता जिनका आतंक चहुओर है |जिनका खौफ पुरे देश में है | आख़िर जब बनती का आपराध इतना गंभीर है तो इन आतंकियो का क्यो नही ,आख़िर किसका गुनाह बड़ा है,ये सोंचना होंगा |मेरा आशय ये कतई नही की बनती को मर कर पुलिस ने गलत किया ,बल्कि यह सराहनीय कदम है हर अपराधी के साथ यही सलूक होना चाहिए ,लेकिन हर अपराधी के साथ |मेरे कहने का मतलब ये है की बनती से भी बदतर सलूक तो उनके साथ करना चाहिए जिनके सिर पर आतंक का भुत छाया हो |आख़िर हम इन आतंकियो की गुनाही बेगुनाही क्यों देंखे जो बम बिछाते समय तनिक भी ये नही सोंचते की मरने वाला कौन है ,उसे वे क्यो मारना चाहते है |उनका मकसद तो सिर्फ़ दहशत पैदा करना है ,देश के अमन कां को बिगड़ना है |
इसलिए अब जरूरत है की इस बात पर गंभीरता से विचार किया जाए और आतंकियो का जखीरा जेल में बटोरना छोड़ दे |नही तो आने वाला समय बहुत ही खतरनाक होगा और ये आतंकी जेल को ही एक ठिकाने के रूप में तब्दील कर लेंगे |
मेरे ये विचार कई लोगो को निरर्थक लग सकते है,इससे सहमत होना न होना उनका अपना मात है लेकिन व्यावहारिक स्तर पर सोचना जरूरी है ....
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
अब बस :कब तक जलेगा धरती का स्वर्ग
आज के हिंदुस्तान अख़बार में छपी जम्मू -कश्मीर की ख़बर देख कर दिल से बरबस ही एक आवाज आई कि अब बहुत हो चुका ...बस करो ...जिस तरह पिछले महीने से लेकर अब तक जम्मू कश्मीर एक छोटे से विवाद को लेकर धधक रहा है ....वह कही से कही तक देशहित में उचित नही है ...अब से भी इसको नियंत्रित नही किया गया तो अंजाम और भी घातक हो सकते है ...जिस तरह से एक मामूली सी घटना ने अलगाववादियों को मौका दे दिया वह वाकई आश्चर्य जनक है ...पहले जो मांगे दबी जुबान उठा करती थी अब वो खुलकर सामने आ गई है ....जिन नेताओ को भारत सरकार वफादार मानती थी वही नेता उन अलगाववादियों की मांगों को न केवल जायज ठहरा रहे है बल्कि मुखरता से उसका नेतृत्व भी कर रहे है ... मामला हाथ से निकला न होता यदि राजनीती आदे नही आती ....बात बिगड़ी केन्द्र सरकार कि राजनीती करो निति के कारण केन्द्र कि यूपीए सरकार अपने राजनितिक हितों को त्याग कर रास्ट्रीय हित कि सोच लेती लेकिन उसने इसकी अनदेखी की....और इसका खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है ....कि आन्दोलन थमने का नाम नही ले रहा है ...सेना कि तैनाती के बावजूद भी धरती का स्वर्ग जल रहा है ।
बीन मांगी बछिया पर इतना बवाल -एक तरफ़ अलगाववादी है तो जम्मू में श्राइन बोर्ड के जमीन कि मांग को लेकर उत्पात मचाने वाले ....इन लोगो कि भूमिका भी इस पुरे प्रकरण में विवादों को हवा देने वाली ही रही यदि इन लोगो ने शुरुआत नही कि होती तो ये आग इतनी नही फैली होती ...इन लोगो ने ही जमीन कि मांग को लेकर संघर्ष शुरू किया था ...संघर्ष समिति के अध्यक्ष लीलाकरण ने अपने एक इंटरव्यू में ये कहा है कि ...वह जमीन सरकार से किसी ने मांगी नही थी उसने ख़ुद दी थी और ख़ुद से ही वापस ले ली....हमारा विरोध यह है कि जमीन दे कर वापस लिया जाना हमारी अस्मिता पर खतरा है ....
जरा सोचिये जो जमीन आपकी नही है ...एसे ही आपको सौपी जा रही थी ....उसे वापस ही ले ली गई तो कौन सी अप्रत्यासित घटना हो गई जिसके लिए पुरे देश को साम्प्रदायिकता कि आग में झोक दिया गया ...आपने एक कहावत सुनी होगी कि दान कि बछिया के डाट नही गिने जाते ....लेकिन यहाँ तो स्थिति ये है कि एक एसी बछिया के लिए बवाल मचा है जोन तो पुरी तरह से दान में मिली थी और नही उसे किसी ने दिया था ......
जनाब ये लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही
देश के राजनीतिज्ञ ये भूल जाते है कि इस देश में लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही ..कि जब मन में आए जो हुक्म जारी कर दिया और जब मन में आए जहा कि कुर्सी हथिया ली .आज धीरे धीरे हालात यही होते जा रहे है ...चुनाव किसी के नाम पर लड़ा जाता है कुर्सी पर अपने मनमाफिक किसी व्यक्ति को बैठा दिया जाता है ..यानि कि जनता की केवल एक जिम्मेदारी है वोट देना ...बाद का काम उनका है ...मतलब वे जिसे चाहे कुर्सी पर बैठाये और जब मन में आ जाए उतार नीचे करे....लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि को एक सेवक का दर्जा दिया गया है जबकि प्रजातंत्र में शासक राजा होता है .....भारत में भी लोकतंत्र इसीलिए अपनाया गया था की जनप्रतिनिधि जनता की सेवा कर सके और जनता को ये लगे की अब उनका अपना शासन है लेकिन धीरे धीरे अपने लोग ही ,अपने बीच के लोग भी एक राजा की भूमिका अदा करने लगे ...उन्होंने लोकतंत्र को न केवल प्रजातंत्र में तब्दील करने की कोशिश की बल्कि लोकतंत्र को प्रजातंत्र के पर्याय के रूप में प्रचारित करना शुरू किया ...नतीजा सामने है आज अधिकांश लोग लोकतंत्र को प्रजातंत्र का ही दूसरा नाम मानते है ....और लोगो की बात कौन करे लोगो जागरूक करने वाला मीडिया भी याही ग़लतफ़हमी पाले है ...बड़े -बड़े दिग्गज पत्रकार भी लोकतंत्र की जगह प्रजातंत्र शब्द का प्रयोग कर बैठते है ....इसलिए जरूरी है की मीडिया भी इस फर्क को समझे और लोगो को भी इसका अंतर समझाए ....खासकर नेताओ को तो इसका एहसास करा ही दे की जनाब ये लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही ....वरना धीरे धीरे न जाने कब वाकई लोकतंत्र प्रजातंत्र में बदल जाए इसका कोई ठिकाना नही ...
राजनितिक सौदेबाजी की बलि चढें कोड़ा
आखिरकार वही हुआ जो किसी भी सौदेबाजी में होता है ये सम्भावना तो पहले से ही जताई जा रही थी कि पिछले दिनों दिल्ली की राजनितिक सरगर्मी का असर कही न कही देखने को तो मिलेगा ही, यूपीए सरकार ने जिस तरह सरकार बनाने के लिए घोर बिरोधी को अपने पाले में ला खड़ा कर लिया जो जोड़ तोड़ कि राजनीति खेली, जिस तरीके से बहुमत जुटाया उससे साफ जाहिर था कि इसका असर कही न कही देर सबेर देखने को मिलेगा
और अब धीरे धीरे असर भी दिखना शुरू हो गया है यू तो इसकी शुरुँआत अप्रत्यक्ष रूप से सरकार बचाने के लिए बहुमत जुटाते समय ही हो गई थी लेकिन अब इसका प्रत्यक्ष रूप भी सामने आ गया है इसकी शुरुआत हुई है झारखण्ड से..... .जहा की 23 माह पुरानी मधु कोडा सरकार को महज इसलिए इस्तीफा दिलवाया गया क्योकि वहाँ यूपीए सरकार को समर्थन देने वाले एक सत्तालोभी सिबू सोरेन को बैठाया जा सके जिससे केन्द्र की सरकार पर कोई आंच नही आए ,याद रहे ये वाही सोरेन है जिन्होंने नरसिंह राव की सरकार बचाने के लिए उस समय भी सौदेबाजी की थी ,ये वही सोरेन है जिन पर अपने निजी सचिव की ही हत्या का आरोप है ,बहरहाल केन्द्र सरकार ने ख़ुद को बचाते हुए अपनी राजनितिक सौदेबाजी को कायम रखने के लिए निर्दलीय मुख्यमंत्री मधु कोडा को बलि का बकरा बना डाला.सिबू ने सोचा की केन्द्र का कार्यकाल कम ही बचा है यैसे में वहा कोई पदवी लेने से बढ़िया है की,प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शेष कार्यकाल का आनंद लिया जाए .......
और अब धीरे धीरे असर भी दिखना शुरू हो गया है यू तो इसकी शुरुँआत अप्रत्यक्ष रूप से सरकार बचाने के लिए बहुमत जुटाते समय ही हो गई थी लेकिन अब इसका प्रत्यक्ष रूप भी सामने आ गया है इसकी शुरुआत हुई है झारखण्ड से..... .जहा की 23 माह पुरानी मधु कोडा सरकार को महज इसलिए इस्तीफा दिलवाया गया क्योकि वहाँ यूपीए सरकार को समर्थन देने वाले एक सत्तालोभी सिबू सोरेन को बैठाया जा सके जिससे केन्द्र की सरकार पर कोई आंच नही आए ,याद रहे ये वाही सोरेन है जिन्होंने नरसिंह राव की सरकार बचाने के लिए उस समय भी सौदेबाजी की थी ,ये वही सोरेन है जिन पर अपने निजी सचिव की ही हत्या का आरोप है ,बहरहाल केन्द्र सरकार ने ख़ुद को बचाते हुए अपनी राजनितिक सौदेबाजी को कायम रखने के लिए निर्दलीय मुख्यमंत्री मधु कोडा को बलि का बकरा बना डाला.सिबू ने सोचा की केन्द्र का कार्यकाल कम ही बचा है यैसे में वहा कोई पदवी लेने से बढ़िया है की,प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शेष कार्यकाल का आनंद लिया जाए .......
बुधवार, 7 मई 2008
विकेंद्रीकरण तो हुआ है
आज एक जगह विकेंद्रीकरण कि चर्चा हो रही थी साथियों ने कहा कि विकेंद्रीकरण के कई फायदे हुए है मुझे भी लगा कि फायदे तो हुए है अब घुस की कमाई एक जगह तक ही सीमित नही रहती है अब मजाल कि कोई अकेला घुस की कमाई खा जाए अब बकायदा उसके हिस्से निर्धारित किए गए है ये विकेंद्रीकरण भी दो स्तरों पर लागु होता है एक राजनितिक और दूसरा प्रसश्निक अब घुस कि राशी केंद्रीकृत नही रहती है दोनों जगहों पर समान रूप मी मिल बात कर खाई जाती है
अब विकेंद्रीकरण का प्रभाव गावों से ही देखने को मिलने लगा है इंदिरा आवास के लिये मिलने वाली रकम क लिए कुछ गाव के प्रधान को तो कुछ ग्राम सेवक को देनी पड़ती हैविकेंद्रीकरण तो हुआ है इस नही है अब सवी कम बांटें हुए है ये तय है कि किस कामइ कहा कितना चदावा चदाना है गाव से वसूली रासी ब्लाक पेर बिदेओ क पास टाक पहुंचती है है न विकेंद्रीकरण
यह सिलसिला यहीं नही रुकता बल्कि चलता रहता है यह राशी क्डियो टाक पहुचती है फ़िर उसमे से कुछ निर्धारित रकम रूपी हिस्सा जिलाधिकारी टाक पहुँचता है जिसमे से मंद्लायुक्त तक पहुँचने कि जिम्मेदारी जिलाधिकारी कि हटी है मंद्लायुक्त व आपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए मुख्य सचिव टाक उसका हिस्सा पहुँचा देता है सीएस भी सीएम तक पहुँचा देता है कितनी ईमानदारी का माहौल तैयार किया है विकेंद्रीकरण ने कोई भी आकेला नही खाता अब सब मिल बाँट के खाते है
ये तो उदाहरण था बस एक छोटी सी योजना का लेकिन विकेंद्रीकरण का प्रभाव देश भर मी चाल रही सभी योजनाओ पर देखने को मिल रहा है अब तो इसका कुछ कुछ प्रभाव ग्लोवल स्तर पर देखने को मिलने लगा है क्योकि अब विश्व मी अर्ब्पतियो कि तादाद मी भारत भी पीछे नही है
अब विकेंद्रीकरण का प्रभाव गावों से ही देखने को मिलने लगा है इंदिरा आवास के लिये मिलने वाली रकम क लिए कुछ गाव के प्रधान को तो कुछ ग्राम सेवक को देनी पड़ती हैविकेंद्रीकरण तो हुआ है इस नही है अब सवी कम बांटें हुए है ये तय है कि किस कामइ कहा कितना चदावा चदाना है गाव से वसूली रासी ब्लाक पेर बिदेओ क पास टाक पहुंचती है है न विकेंद्रीकरण
यह सिलसिला यहीं नही रुकता बल्कि चलता रहता है यह राशी क्डियो टाक पहुचती है फ़िर उसमे से कुछ निर्धारित रकम रूपी हिस्सा जिलाधिकारी टाक पहुँचता है जिसमे से मंद्लायुक्त तक पहुँचने कि जिम्मेदारी जिलाधिकारी कि हटी है मंद्लायुक्त व आपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए मुख्य सचिव टाक उसका हिस्सा पहुँचा देता है सीएस भी सीएम तक पहुँचा देता है कितनी ईमानदारी का माहौल तैयार किया है विकेंद्रीकरण ने कोई भी आकेला नही खाता अब सब मिल बाँट के खाते है
ये तो उदाहरण था बस एक छोटी सी योजना का लेकिन विकेंद्रीकरण का प्रभाव देश भर मी चाल रही सभी योजनाओ पर देखने को मिल रहा है अब तो इसका कुछ कुछ प्रभाव ग्लोवल स्तर पर देखने को मिलने लगा है क्योकि अब विश्व मी अर्ब्पतियो कि तादाद मी भारत भी पीछे नही है
शनिवार, 3 मई 2008
राईस राईस यू आर राईट
विश्व मे गहराते खाद्य संकट पर अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडेलिसा राईस ने कहा कि भारत और चीन जैसे देशों मे अब लोग पहले के मुकाबले ठीक से खाने लगे है उनके इस कथन की चाहुतरफा आलोचना हुई लेकिन जब मै ये ख़बर पढ़ रहा था उसी समय हिंदुस्तान के फ्रंट पेज पर एक स्टोरी येसी थी जो राईस के इस बयां की पुष्टि कर रही थी ख़बर दिल्ली के चिडियाघर की थी यहा आम आदमी भले प्याज खाने को तरसे लेकिन वहा का बन्दर रोज २५ ग्राम प्याज जरूर खाता है.बन्दर इसके अलावा २५ ग्राम टमाटर , दो केले,१०० ग्राम ब्रेड ,दूध ,आलू ,खीरा ,तरबूज ,खरबूज ,सेब ,संतरा ,अंडा भी खाता हैवहीं चिम्पंजी गर्मियों से बचने के लिये २५० ग्राम बेल फ्रूट ,तरबूज ,चीकू ,पपीता , आलू ,खीरा , ७०० ग्राम् सेब ,४००ग्राम् संतरा ,८०० ग्राम दूध ,२००तमतर् ,१०० ग्राम प्याज खाता है भालू भी ७ केले ,५०० ग्राम दूध , २ किलो खीरा ,२५० ग्राम आलू ,तरबूज ,खरबूज , और ५००ग्रम् चीकू रोज खा रहा है एसे ही चिडियाघर मे और जानवरों की भी मौज है
अब आप ही बताइए न राईस ने क्या बुरा कह दिया भाई जिस देश के जानवरों की डाइट इतनी हो उस देश के लोगो का क्या हाल होगा आप अंदाजा लगाइए हकीकत क्या है ये आप जानते है हम जानते है बाहर का कोई आदमी क्या जानता है अब आप बताइए बेचारी राईस की क्या गलती है इसमे ,उन्होंने तो जब ये देखा की जिस देश के जानवर इतने खाते है तो आदमी तो खाते ही होंगे लेकिन राईस को ये कौन समझाए की ये एसा देश है कि लोग ख़ुद तो भूखे रह जाते है लेकिन पालतुवो को जरूर खिलाते है फ़िर ओ चाहे जानवर हो या अमेरिकी रास्त्रपति जनता को खिलाने की व्यवस्था यहा की सरकार नही करती लेकिन बुश के स्वागत मे करोडो खर्च करती है.आप ही सोचिये न ,है न पहले से अच्छे
अब आप ही बताइए न राईस ने क्या बुरा कह दिया भाई जिस देश के जानवरों की डाइट इतनी हो उस देश के लोगो का क्या हाल होगा आप अंदाजा लगाइए हकीकत क्या है ये आप जानते है हम जानते है बाहर का कोई आदमी क्या जानता है अब आप बताइए बेचारी राईस की क्या गलती है इसमे ,उन्होंने तो जब ये देखा की जिस देश के जानवर इतने खाते है तो आदमी तो खाते ही होंगे लेकिन राईस को ये कौन समझाए की ये एसा देश है कि लोग ख़ुद तो भूखे रह जाते है लेकिन पालतुवो को जरूर खिलाते है फ़िर ओ चाहे जानवर हो या अमेरिकी रास्त्रपति जनता को खिलाने की व्यवस्था यहा की सरकार नही करती लेकिन बुश के स्वागत मे करोडो खर्च करती है.आप ही सोचिये न ,है न पहले से अच्छे
मंगलवार, 29 अप्रैल 2008
ये तो होना ही था
हरभजन ने श्रीसंत को तमाचा जड़ा चारो ओर हंगामा हो गया साब कही नवजोद साहब इसे क्रिककेट के बिरुद्ध बता रहे है तो कही ललित मोदी हरभजन और श्रीसंत को मीडिया के सामने गले मिलाने मे हैरान थे ये तो अभी शुरुआत है साब अपने खिलाड़ी आपस मे ही भिडेंगे आगे -आगे देखते जाइये ये २० -२० का भुत किसको किसको लडाता है क्योकि कोई किसी के लिये नही बल्कि सब पैसे के लिये खेल रहे है ये मे नही भारत के ही एक प्रतिभावान खिलाड़ी ने पहले ही कहा है कभी एक समय था कि भज्जी की हलकी सी तू तू मैं मैं के समर्थन मे पुरा देश एक साथ खड़ा रहता था आज स्थिति दूसरी है आईपीअल ने तो उन सबको ला के एक कतार मे खड़ा किया है जो एक दुसरे के घोर विरोधी थे सब एक साथ हो गए है ये पैसा क्या जो जो न करा दे अब स्वदेशी विदेशी का झगडा नही बल्कि स्वदेशी स्वदेशी का झगडा होंगा जिसका पहला नमूना देखने को मिला है वाह रे पैसा तेरी लीला अपरम्पार है अब देश के जीत की दुहैया नही दी जाएँगी बल्कि अब प्रीति शाहरुख़ के जीत कि दुहैंया दी जाएँगीअब भारत के जीत के लिये नही चेन्नई और दिल्ली के लिये दुआ मांगी जायेगी
शनिवार, 26 अप्रैल 2008
ईस्ट नॉर वेस्ट एमजे इज द बेस्ट
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविध्यालय मे प्रतिभा-२००८ का आयोजन किया गया जिसमे सभी विभागों ने चढ़ बढ़ कर हिस्सा लिया लेकिन सर्वाधिक अवार्ड मास्टर ऑफ़ जेर्नालिज्म के छात्र छात्राओ ने जीतें कुल ४० आवार्दों में से १३ अवार्ड इसी विभाग के छात्र छात्राओ ने जीतें इस विभाग को सर्वाधिक अवार्ड जितने के लिये खिताब देकर सम्मानित किया गया
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008
भोपाल मे आपका स्वागत है
तेरा तुझको अर्पण
बुधवार, 23 अप्रैल 2008
बात जुबान पर आही गई
बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपया ये कहावत बहुत पुरानी है लेकिन हाल ही मे इसे कर दिखाया है क्रिककेटर इशांत शर्मा ने कहते है न दिल कि बात जुबान पर आ ही जाती है वैसे ही आपिअल के बाद से जो अटकले लगाई जा रही थी वह सामने ही आ गई होनहार क्रिककेटर इशांत ने अपने दिल कि बात कह ही दी इशांत ने कहा कि क्रिक्केट नही रुपया बड़ा है वाह इशांत तुमने सही तो कहा इस खेल कि हकीकत ही यही है कोई कहीं के लिये नही खेलता बल्कि सब पैसे के लिये खेलते है
आरे क्रिक्केट'के दिवानो अबसे भी हकीकत पहचानो
क्रिक्केट को दिल से नीकालों
आरे क्रिक्केट'के दिवानो अबसे भी हकीकत पहचानो
क्रिक्केट को दिल से नीकालों
क्या आप कवारे है ?
जी हाँ ये मैं नही अपने को सरव्श्रेस्ट न्यूज़ चैनल कहने वाला आजतक पूछ रहा है ये उस चैनल की आज दिखाई जाने वाली स्टोरी है चैनेल के एंकर कहते है की यदि आप शादी करने वाले है तो जल्दी कर ले नही तो ६ महीने तक शादी नही कर पाएंगे इसके पीछे कारण ये बताया जा रहा है कि तीन मई से ११ जुलाई तक शुक्र अस्त हो रहा है और अगले दो महीने सावन भादो मे शादिया होती नही है तो कुल मिलाकर लगभग पांच महीने तक शादी के लिये कोई मुहूर्त नही है तो सभी कवर जो शादी की सोछ रहे हो तो तयार हो जायें ये ख़बर है सब देश के सबसे तेज़ चैनल की है न महत्वपूर्ण ख़बर ये हाल है साब न्यूज़ चनेल्स की
रविवार, 20 अप्रैल 2008
गुरुदेव सम्मानित
अध्यक्ष पुष्पेन्द्र पाल सिंह को ठाकुर वेद राम प्रिंट मीडिया एंव पत्रकारिता शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिये उन्हें 21 अप्रैल को यह पुरस्कार दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि यह पुरस्कार दुनिया भर में कुल्लू के शॉल को नई पहचान दिलाने वाले ठाकुर वेदराम के जन्मदिवस पर आयोजित एक समारोह में प्रदान किया जाएगा।
स्रोत बोल हल्ला
स्रोत बोल हल्ला
शुक्रवार, 18 अप्रैल 2008
यह है आक्रोश
मेरा आक्रोश है
इस व्यवस्था के प्रति जहा सेवक राजा बन बैठा है
जहा रक्षक भक्षक बन बैठा है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो देश मे जात-पात का जहर घोलते है
जो देश मे साम्प्रदायिकता की आग जलाते है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो दूसरो का शोसन करते है
जो केवल अपना हित साधतें है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो खाते यह की है
और गाते कही और की है
इस व्यवस्था के प्रति जहा सेवक राजा बन बैठा है
जहा रक्षक भक्षक बन बैठा है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो देश मे जात-पात का जहर घोलते है
जो देश मे साम्प्रदायिकता की आग जलाते है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो दूसरो का शोसन करते है
जो केवल अपना हित साधतें है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो खाते यह की है
और गाते कही और की है
बुधवार, 16 अप्रैल 2008
कवियों पर एक कविता .......
एक बार साब हाल ही मे बहुत दिनों के बाद कवि सम्मेलन मे जाने का मौका लगा।
वहा से आने के बाद मैंने जो कुछ अनुभूति की उसे ही शब्दों मे पिरोया है
ये पत्रकारिता का धर्म ही एसा है जहा जावो कुछ ले कर आओ ............
कविता एसी है -------
कवि तो हम बन गए
दोस्तो यारो मे वाहवाही लूट कर
अभी बने ही थे कवि,
तब तक एक मंच पर बुला दिया गया कभी
साब बिषय तो था नही , नाम के थे कवि
पर किसको बताए
इतनी भीड़ मे किसको -किसको समझाए
इतने मे एक सरदारजी
मंच पर मुस्कुराए
मेरी तो जैसे बांछे खिली
फ़िर क्या था मैंने भी जमकर उन पर ब्यंग्बाद चलाए
फ़िर भी सरदारजी अपनी मुस्कान नही घटाए
मन ने कहा वाह सरदारजी कुछ समय तो हमारा खपाए
अब ज्यादा नही झेला सकता था
नही तो जनता से लात जूते भी खा सकता था
जनता की रंगत देखकर
मन ने कहा -बिषय बदल ले गुरु
नही तो जनता हो जायेगी शुरू
तब तक एक साहब आए
और लपककर हमारी तरफ़ कैमरा भिडाये
मन से दाद निकली वाह!गुरु क्या खूब समय पर आए
और हमारा काम चलाये
तो साहब दूसरा विषय मिला हमे
मुख के कपट खोले हमने
अब मीडिया पर जमकर बाद चलाये
बोले -ये तो साप-बिच्छू दुन्ड़ते है
लगता है किसी ने भेजा था संदेश की
आज मंच पर कुछ लोग आने वाले है
आपनी -आपनी मदारी दिखाने वाले है
हो सकता है मिल जाए कोई एक्सक्लूसिव
इसलिए इन्होने भी आकर उपस्थिति दर्ज करा दी
आज ये साप -बिच्छू नही दिखायेंगे
कवियों को आसमान पर चदायेंगे
कैमरा लगायेंगे जिसे देखकर कवि भी खूब चिलायेंगे
आप्ना जलवा दिखायेंगे
मीडिया इन्हे कम दिखाता है
इसकी भड़ास ब्यंग कर - करके निकालते है
फिर भी देखो कितना अच्छा है
मीडिया अभी भी सच्चा है
फिर भी इनकी कविता लोगों तक पहुँचाता है
और इनकी ख्याति बढाता है
फिर भी इनको रहती मलाल है
ऐश्वर्या -अभिषेक सा कवरेज़ हम क्यों नहीं पाते
सारी मीडिया पर हम क्यों नही छा जातें
हमारी भी होती बल्ले -बल्ले
तब तो हम मीडिया की जय बोलें
वहा से आने के बाद मैंने जो कुछ अनुभूति की उसे ही शब्दों मे पिरोया है
ये पत्रकारिता का धर्म ही एसा है जहा जावो कुछ ले कर आओ ............
कविता एसी है -------
कवि तो हम बन गए
दोस्तो यारो मे वाहवाही लूट कर
अभी बने ही थे कवि,
तब तक एक मंच पर बुला दिया गया कभी
साब बिषय तो था नही , नाम के थे कवि
पर किसको बताए
इतनी भीड़ मे किसको -किसको समझाए
इतने मे एक सरदारजी
मंच पर मुस्कुराए
मेरी तो जैसे बांछे खिली
फ़िर क्या था मैंने भी जमकर उन पर ब्यंग्बाद चलाए
फ़िर भी सरदारजी अपनी मुस्कान नही घटाए
मन ने कहा वाह सरदारजी कुछ समय तो हमारा खपाए
अब ज्यादा नही झेला सकता था
नही तो जनता से लात जूते भी खा सकता था
जनता की रंगत देखकर
मन ने कहा -बिषय बदल ले गुरु
नही तो जनता हो जायेगी शुरू
तब तक एक साहब आए
और लपककर हमारी तरफ़ कैमरा भिडाये
मन से दाद निकली वाह!गुरु क्या खूब समय पर आए
और हमारा काम चलाये
तो साहब दूसरा विषय मिला हमे
मुख के कपट खोले हमने
अब मीडिया पर जमकर बाद चलाये
बोले -ये तो साप-बिच्छू दुन्ड़ते है
लगता है किसी ने भेजा था संदेश की
आज मंच पर कुछ लोग आने वाले है
आपनी -आपनी मदारी दिखाने वाले है
हो सकता है मिल जाए कोई एक्सक्लूसिव
इसलिए इन्होने भी आकर उपस्थिति दर्ज करा दी
आज ये साप -बिच्छू नही दिखायेंगे
कवियों को आसमान पर चदायेंगे
कैमरा लगायेंगे जिसे देखकर कवि भी खूब चिलायेंगे
आप्ना जलवा दिखायेंगे
मीडिया इन्हे कम दिखाता है
इसकी भड़ास ब्यंग कर - करके निकालते है
फिर भी देखो कितना अच्छा है
मीडिया अभी भी सच्चा है
फिर भी इनकी कविता लोगों तक पहुँचाता है
और इनकी ख्याति बढाता है
फिर भी इनको रहती मलाल है
ऐश्वर्या -अभिषेक सा कवरेज़ हम क्यों नहीं पाते
सारी मीडिया पर हम क्यों नही छा जातें
हमारी भी होती बल्ले -बल्ले
तब तो हम मीडिया की जय बोलें
दो पंक्तिया.......
कोई पागल समझता है
कोई दीवाना कहता है
मगर धरती की बेचैनी तो बस अम्बर समझता है
मैं तुमसे दूर कैसा हू
तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है
ये तेरा दिल समझता है
मेरा दिल बर्बाद करके वो
आबाद रहतें है
कोई कल कह रहा था कि
अब वो घर के पास रहतें है
कोई दीवाना कहता है
मगर धरती की बेचैनी तो बस अम्बर समझता है
मैं तुमसे दूर कैसा हू
तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है
ये तेरा दिल समझता है
मेरा दिल बर्बाद करके वो
आबाद रहतें है
कोई कल कह रहा था कि
अब वो घर के पास रहतें है
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