मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

अबकी दीपावली पर दीप नही........


अबकी दीवाली पर दीप जलाने की जरूरत नही है इस दीवाली पर आतंक को जलाने की जरूरत है आतंकियो को जलाने की जरूरत है जिनकी वजह से लाखों माओ की गोद सुनी हो गई ,लाखों बच्चे आनाथ हो गए लाखों सुहागिनों का सुहाग छीन गए आपके और हमारे इर्द गिर्द मौजूद गद्दारों को जलाने की जरूरत है उन को जलाने की जरूरत है जो रिश्वत खोर है भ्रस्ताचारी हैराज ठाकरे जैसे देश द्रोहियों को जलाने की जरूरत है जो भाषा के नाम पर नफरत फैला रहा है दिलो को तोड़ने का काम कर रहा है देश को खंडित करने का काम कर रहा है,एसे ठेकेदारों को जलाने की जरूरत है जो धर्म के नाम पर जहर के बिज बो रहे है,उनको जलाने की जरूरत है जो लोग जाति के नाम पर समाज में दीवार खड़ी कर रहे है ,जाति के आधार पर समाज को विखण्डित करने का काम कर रहे है,वास्तव में दीपावली सही अर्थों में अंधकार रूपी बुरियो को ख़त्म कर अच्छाइयों की तरफ़ ले जाने का त्यौहार है इसलिए इस बार दीप नही समाज के एसे गद्दारों को जलाने की जरूरत है जो देश में हमेशा उथल पुथल उत्पात मचाये रहते है दिलों को जोड़ने के बजे तोड़ने का काम करते रहते है जब इस देश में दिलो को जोड़ने वालो को नही रहने दिया गया तो दिलो को तोड़ने वालो समाज को बाटने वाले इन आतातैयो को भी इस देश में रहने का कोई हक़ नही है तवी हमारे पर्व की सार्थकता है अन्यथा मगन रहिये पठाके में ,घर में कौन रोकता है ये दीपावली भी उसी तरह बीत जायेगी जैसी पिछली गुजरी थी

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