मंगलवार, 26 अगस्त 2008

राजनितिक सौदेबाजी की बलि चढें कोड़ा


आखिरकार वही हुआ जो किसी भी सौदेबाजी में होता है ये सम्भावना तो पहले से ही जताई जा रही थी कि पिछले दिनों दिल्ली की राजनितिक सरगर्मी का असर कही न कही देखने को तो मिलेगा ही, यूपीए सरकार ने जिस तरह सरकार बनाने के लिए घोर बिरोधी को अपने पाले में ला खड़ा कर लिया जो जोड़ तोड़ कि राजनीति खेली, जिस तरीके से बहुमत जुटाया उससे साफ जाहिर था कि इसका असर कही न कही देर सबेर देखने को मिलेगा
और अब धीरे धीरे असर भी दिखना शुरू हो गया है यू तो इसकी शुरुँआत अप्रत्यक्ष रूप से सरकार बचाने के लिए बहुमत जुटाते समय ही हो गई थी लेकिन अब इसका प्रत्यक्ष रूप भी सामने आ गया है इसकी शुरुआत हुई है झारखण्ड से..... .जहा की 23 माह पुरानी मधु कोडा सरकार को महज इसलिए इस्तीफा दिलवाया गया क्योकि वहाँ यूपीए सरकार को समर्थन देने वाले एक सत्तालोभी सिबू सोरेन को बैठाया जा सके जिससे केन्द्र की सरकार पर कोई आंच नही आए ,याद रहे ये वाही सोरेन है जिन्होंने नरसिंह राव की सरकार बचाने के लिए उस समय भी सौदेबाजी की थी ,ये वही सोरेन है जिन पर अपने निजी सचिव की ही हत्या का आरोप है ,बहरहाल केन्द्र सरकार ने ख़ुद को बचाते हुए अपनी राजनितिक सौदेबाजी को कायम रखने के लिए निर्दलीय मुख्यमंत्री मधु कोडा को बलि का बकरा बना डाला.सिबू ने सोचा की केन्द्र का कार्यकाल कम ही बचा है यैसे में वहा कोई पदवी लेने से बढ़िया है की,प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शेष कार्यकाल का आनंद लिया जाए .......

कोई टिप्पणी नहीं: