गुरुवार, 28 अगस्त 2008

देश के हालात:आज कल

कही प्रकृति का कहर .......
कही बम विस्फोट से बन गए खंडहर ही खंडहर
आख़िर कब तक जलेंगे शहर दर शहर
भारत माता कह रही हर पहर
अरे कम से कम अब तो खाओ रहम
और बंद करो ये करम
बंद करो ये करम

बेरहमो पर कैसा रहम

देश आज आतंकी गतिविधियों का ठिकाना सा बन गया है.एक के बाद एक बम धमाके हो रहें है , गुलाबी नगरी जयपुर से शुरू हुआ बम विस्फोट का सिलसिला थमने का नाम नही ले रह .लगातार कहीं से विस्फोटक वरामद हो रहें है तो कही पर बम ब्लास्ट करने की साजिशों का खुलासा हो रहा है |
इन सभी घटनाकर्मो ने कई प्रसन खड़े किए है जिस पर निश्चित रूप से गंभीरता से विचार करने की जरूरत है |एक सवाल ये भी है की आख़िर कब तक हम उन दरिंदों को मद्यप्रदेश से लेकर गुजरात की सैर करते रहेंगे जो निरीह लोगो को इस लोक से परलोक भेजने का काम करते है |आख़िर कब तक हम इस बात का आनुसरन करते रहेंगे की सौ अपराधी भले ही बच जाए लेकिन एक बेगुनाह को सजा नही होनी चाहिए |ये बात उस समय तक ही अच्छी लगती है जब आतंरिक अपराध की बात आती है लेकिन जब आए दिन सैकड़ों लोगो को मौत की घाट उतरा जा रह हो ,बेगुनाहों की लाशे बिछायी जा रही हो ,वहा इस सोच को बदलने की जरूरत आन पड़ती है |एसे में ये कहा तक वाजिब है की हजारो लोगो को की जान लेने वाले इन आतातियो को हम सिर्फ़ इस लिए जेल में बैठकर पाले की उन पर अभी आरोप सिध्द नही हुए है|यह कहा तक उचित है की एसे आतंकियो को सिर्फ़ इसलिए पाला पोसा जाए की आदालत का फ़ैसला आने के बाद ही उन पर कोई कार्रवाई की जायेगी |इसी दौरान एक दिन एसा आएगा की येही आतंकी जेल में बैठे बैठे आतंकी वारदातों को अंजाम देंगे ही साथ ही कही फ़िर प्लेन हाइजैक करा कर आपनी रिहाई का रास्ता ख़ुद बा ख़ुद तैयार कर लेंगे और फ़िर कोई नेता प्लेन में फंसे लोगों की दुहाई दे कर कंधार जैसे किसी हवाई अड्डे पर बड़े ही सम्मान के साथ आतंकियो को विदा कर दे तो कोई आश्चर्य नही|एसे में देश के न्यायालय ,पुलिस के पास मुक्दार्सक बन्ने के सिवाय कोई चारा नही रह जाएगा |कम से कम पिछले रिकार्डो के आधार पर ये अनुमान लगना कही से लेकर कही तक अनुचित नही है |
इस देश की राजधानी में एक बिकर गैंग का सरगना इनामी बदमाश ओमप्रकाश उर्फ़ बनती को पुलिस इन्कोउन्टर में केवल इस बिनाद पर मार दिया जाता है की वह न केवल मोटर साइकिल छीनता था बल्कि मोटर साइकिल मालिक को मौत के घाट भी उतार देता था ,उसका पुरे सहर में खौफ था तो सफ़दर नागौरी ,शाहबाज ,मंसूरी जैसे लोगो को क्यो नही मारा जा सकता जिनका आतंक चहुओर है |जिनका खौफ पुरे देश में है | आख़िर जब बनती का आपराध इतना गंभीर है तो इन आतंकियो का क्यो नही ,आख़िर किसका गुनाह बड़ा है,ये सोंचना होंगा |मेरा आशय ये कतई नही की बनती को मर कर पुलिस ने गलत किया ,बल्कि यह सराहनीय कदम है हर अपराधी के साथ यही सलूक होना चाहिए ,लेकिन हर अपराधी के साथ |मेरे कहने का मतलब ये है की बनती से भी बदतर सलूक तो उनके साथ करना चाहिए जिनके सिर पर आतंक का भुत छाया हो |आख़िर हम इन आतंकियो की गुनाही बेगुनाही क्यों देंखे जो बम बिछाते समय तनिक भी ये नही सोंचते की मरने वाला कौन है ,उसे वे क्यो मारना चाहते है |उनका मकसद तो सिर्फ़ दहशत पैदा करना है ,देश के अमन कां को बिगड़ना है |
इसलिए अब जरूरत है की इस बात पर गंभीरता से विचार किया जाए और आतंकियो का जखीरा जेल में बटोरना छोड़ दे |नही तो आने वाला समय बहुत ही खतरनाक होगा और ये आतंकी जेल को ही एक ठिकाने के रूप में तब्दील कर लेंगे |
मेरे ये विचार कई लोगो को निरर्थक लग सकते है,इससे सहमत होना न होना उनका अपना मात है लेकिन व्यावहारिक स्तर पर सोचना जरूरी है ....

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

अब बस :कब तक जलेगा धरती का स्वर्ग


आज के हिंदुस्तान अख़बार में छपी जम्मू -कश्मीर की ख़बर देख कर दिल से बरबस ही एक आवाज आई कि अब बहुत हो चुका ...बस करो ...जिस तरह पिछले महीने से लेकर अब तक जम्मू कश्मीर एक छोटे से विवाद को लेकर धधक रहा है ....वह कही से कही तक देशहित में उचित नही है ...अब से भी इसको नियंत्रित नही किया गया तो अंजाम और भी घातक हो सकते है ...जिस तरह से एक मामूली सी घटना ने अलगाववादियों को मौका दे दिया वह वाकई आश्चर्य जनक है ...पहले जो मांगे दबी जुबान उठा करती थी अब वो खुलकर सामने आ गई है ....जिन नेताओ को भारत सरकार वफादार मानती थी वही नेता उन अलगाववादियों की मांगों को न केवल जायज ठहरा रहे है बल्कि मुखरता से उसका नेतृत्व भी कर रहे है ... मामला हाथ से निकला न होता यदि राजनीती आदे नही आती ....बात बिगड़ी केन्द्र सरकार कि राजनीती करो निति के कारण केन्द्र कि यूपीए सरकार अपने राजनितिक हितों को त्याग कर रास्ट्रीय हित कि सोच लेती लेकिन उसने इसकी अनदेखी की....और इसका खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है ....कि आन्दोलन थमने का नाम नही ले रहा है ...सेना कि तैनाती के बावजूद भी धरती का स्वर्ग जल रहा है ।
बीन मांगी बछिया पर इतना बवाल -एक तरफ़ अलगाववादी है तो जम्मू में श्राइन बोर्ड के जमीन कि मांग को लेकर उत्पात मचाने वाले ....इन लोगो कि भूमिका भी इस पुरे प्रकरण में विवादों को हवा देने वाली ही रही यदि इन लोगो ने शुरुआत नही कि होती तो ये आग इतनी नही फैली होती ...इन लोगो ने ही जमीन कि मांग को लेकर संघर्ष शुरू किया था ...संघर्ष समिति के अध्यक्ष लीलाकरण ने अपने एक इंटरव्यू में ये कहा है कि ...वह जमीन सरकार से किसी ने मांगी नही थी उसने ख़ुद दी थी और ख़ुद से ही वापस ले ली....हमारा विरोध यह है कि जमीन दे कर वापस लिया जाना हमारी अस्मिता पर खतरा है ....

जरा सोचिये जो जमीन आपकी नही है ...एसे ही आपको सौपी जा रही थी ....उसे वापस ही ले ली गई तो कौन सी अप्रत्यासित घटना हो गई जिसके लिए पुरे देश को साम्प्रदायिकता कि आग में झोक दिया गया ...आपने एक कहावत सुनी होगी कि दान कि बछिया के डाट नही गिने जाते ....लेकिन यहाँ तो स्थिति ये है कि एक एसी बछिया के लिए बवाल मचा है जोन तो पुरी तरह से दान में मिली थी और नही उसे किसी ने दिया था ......


जनाब ये लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही

देश के राजनीतिज्ञ ये भूल जाते है कि इस देश में लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही ..कि जब मन में आए जो हुक्म जारी कर दिया और जब मन में आए जहा कि कुर्सी हथिया ली .आज धीरे धीरे हालात यही होते जा रहे है ...चुनाव किसी के नाम पर लड़ा जाता है कुर्सी पर अपने मनमाफिक किसी व्यक्ति को बैठा दिया जाता है ..यानि कि जनता की केवल एक जिम्मेदारी है वोट देना ...बाद का काम उनका है ...मतलब वे जिसे चाहे कुर्सी पर बैठाये और जब मन में आ जाए उतार नीचे करे....लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि को एक सेवक का दर्जा दिया गया है जबकि प्रजातंत्र में शासक राजा होता है .....भारत में भी लोकतंत्र इसीलिए अपनाया गया था की जनप्रतिनिधि जनता की सेवा कर सके और जनता को ये लगे की अब उनका अपना शासन है लेकिन धीरे धीरे अपने लोग ही ,अपने बीच के लोग भी एक राजा की भूमिका अदा करने लगे ...उन्होंने लोकतंत्र को न केवल प्रजातंत्र में तब्दील करने की कोशिश की बल्कि लोकतंत्र को प्रजातंत्र के पर्याय के रूप में प्रचारित करना शुरू किया ...नतीजा सामने है आज अधिकांश लोग लोकतंत्र को प्रजातंत्र का ही दूसरा नाम मानते है ....और लोगो की बात कौन करे लोगो जागरूक करने वाला मीडिया भी याही ग़लतफ़हमी पाले है ...बड़े -बड़े दिग्गज पत्रकार भी लोकतंत्र की जगह प्रजातंत्र शब्द का प्रयोग कर बैठते है ....इसलिए जरूरी है की मीडिया भी इस फर्क को समझे और लोगो को भी इसका अंतर समझाए ....खासकर नेताओ को तो इसका एहसास करा ही दे की जनाब ये लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही ....वरना धीरे धीरे न जाने कब वाकई लोकतंत्र प्रजातंत्र में बदल जाए इसका कोई ठिकाना नही ...










राजनितिक सौदेबाजी की बलि चढें कोड़ा


आखिरकार वही हुआ जो किसी भी सौदेबाजी में होता है ये सम्भावना तो पहले से ही जताई जा रही थी कि पिछले दिनों दिल्ली की राजनितिक सरगर्मी का असर कही न कही देखने को तो मिलेगा ही, यूपीए सरकार ने जिस तरह सरकार बनाने के लिए घोर बिरोधी को अपने पाले में ला खड़ा कर लिया जो जोड़ तोड़ कि राजनीति खेली, जिस तरीके से बहुमत जुटाया उससे साफ जाहिर था कि इसका असर कही न कही देर सबेर देखने को मिलेगा
और अब धीरे धीरे असर भी दिखना शुरू हो गया है यू तो इसकी शुरुँआत अप्रत्यक्ष रूप से सरकार बचाने के लिए बहुमत जुटाते समय ही हो गई थी लेकिन अब इसका प्रत्यक्ष रूप भी सामने आ गया है इसकी शुरुआत हुई है झारखण्ड से..... .जहा की 23 माह पुरानी मधु कोडा सरकार को महज इसलिए इस्तीफा दिलवाया गया क्योकि वहाँ यूपीए सरकार को समर्थन देने वाले एक सत्तालोभी सिबू सोरेन को बैठाया जा सके जिससे केन्द्र की सरकार पर कोई आंच नही आए ,याद रहे ये वाही सोरेन है जिन्होंने नरसिंह राव की सरकार बचाने के लिए उस समय भी सौदेबाजी की थी ,ये वही सोरेन है जिन पर अपने निजी सचिव की ही हत्या का आरोप है ,बहरहाल केन्द्र सरकार ने ख़ुद को बचाते हुए अपनी राजनितिक सौदेबाजी को कायम रखने के लिए निर्दलीय मुख्यमंत्री मधु कोडा को बलि का बकरा बना डाला.सिबू ने सोचा की केन्द्र का कार्यकाल कम ही बचा है यैसे में वहा कोई पदवी लेने से बढ़िया है की,प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शेष कार्यकाल का आनंद लिया जाए .......