मेरा आक्रोश है
इस व्यवस्था के प्रति जहा सेवक राजा बन बैठा है
जहा रक्षक भक्षक बन बैठा है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो देश मे जात-पात का जहर घोलते है
जो देश मे साम्प्रदायिकता की आग जलाते है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो दूसरो का शोसन करते है
जो केवल अपना हित साधतें है
मेरा आक्रोश है उनके प्रति
जो खाते यह की है
और गाते कही और की है
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