मंगलवार, 26 अगस्त 2008

जनाब ये लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही

देश के राजनीतिज्ञ ये भूल जाते है कि इस देश में लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही ..कि जब मन में आए जो हुक्म जारी कर दिया और जब मन में आए जहा कि कुर्सी हथिया ली .आज धीरे धीरे हालात यही होते जा रहे है ...चुनाव किसी के नाम पर लड़ा जाता है कुर्सी पर अपने मनमाफिक किसी व्यक्ति को बैठा दिया जाता है ..यानि कि जनता की केवल एक जिम्मेदारी है वोट देना ...बाद का काम उनका है ...मतलब वे जिसे चाहे कुर्सी पर बैठाये और जब मन में आ जाए उतार नीचे करे....लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि को एक सेवक का दर्जा दिया गया है जबकि प्रजातंत्र में शासक राजा होता है .....भारत में भी लोकतंत्र इसीलिए अपनाया गया था की जनप्रतिनिधि जनता की सेवा कर सके और जनता को ये लगे की अब उनका अपना शासन है लेकिन धीरे धीरे अपने लोग ही ,अपने बीच के लोग भी एक राजा की भूमिका अदा करने लगे ...उन्होंने लोकतंत्र को न केवल प्रजातंत्र में तब्दील करने की कोशिश की बल्कि लोकतंत्र को प्रजातंत्र के पर्याय के रूप में प्रचारित करना शुरू किया ...नतीजा सामने है आज अधिकांश लोग लोकतंत्र को प्रजातंत्र का ही दूसरा नाम मानते है ....और लोगो की बात कौन करे लोगो जागरूक करने वाला मीडिया भी याही ग़लतफ़हमी पाले है ...बड़े -बड़े दिग्गज पत्रकार भी लोकतंत्र की जगह प्रजातंत्र शब्द का प्रयोग कर बैठते है ....इसलिए जरूरी है की मीडिया भी इस फर्क को समझे और लोगो को भी इसका अंतर समझाए ....खासकर नेताओ को तो इसका एहसास करा ही दे की जनाब ये लोकतंत्र है प्रजातंत्र नही ....वरना धीरे धीरे न जाने कब वाकई लोकतंत्र प्रजातंत्र में बदल जाए इसका कोई ठिकाना नही ...










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