शुक्रवार, 28 नवंबर 2008
कही देश संयम मंदी की चपेट में न आ जाए........!
जब भी देश में कोई आतंकी हमला होता है हमारे देश के शीर्ष नेताओ से लेकर पीएम् तक एक ही बात कहते नजर आते है की संयम से काम लेने की जरुरत है देश में लगातार बम धमाके होते जा रहे है और अभी तक बस एक ही बात कही जाती है की संयम से कम लीजिये ,धैर्य से कम लीजिए बनारस में धमाके हुए तो यही बातें कही गई ,गुलाबी नगरी जयपुर को लहूलुहान किया गया तो भी यही वाक्य ,अहमदाबाद दहल उठा तो भी यही राग आलापा गया ,देश की राजधानी दिल्ली जब थर्रा उठी तो सुर बदले राग वही रहा ......... अब देश की आर्थिक राजधानी में बम धमाके हुए है तो भी जनता को संयम से काम लेने की नसीहत दी गई पी एम साहब जिस हिसाब से भारत की जनता को संयम की जरुरत पड़ रही है ....उसके लिए भी आपको एक फंड की व्यवस्था करनी चाहिए ......जो लोगो को केवल संयमी बनाने पर खर्च किया जाए ......भारत की जनता को एसे माहोल में संयमित रहने के लिए ट्रेंड करेइसकी देख रेख के लिए एक विभाग भी बनाया जाए संयमित विभाग इसका काम केवल संयमित रखना ही होगा और हा पी एम साब ये ध्यान रखियेगा की इस विभाग का मंत्री जो बने कम से कम ओ ख़ुद तो संयमित रहे ...नही तो पता चला की अन्य विभागों की तरह ओ भी संयम खो बैठा और भांड का बंदरबांट कर बैठा तो .............मुझे तो लगता है आपने आपने कार्य कल में जीतनी नसीहते संयम रखने की दे डाली है उससे देश आर्थिक मंदी की तरह किसी दिन संयम मंदी का शिकार न बन जाए ....हां जनाब आप देखिये की यदि इसी तरह हमले होते रहे तो मंदी की डिमांड बढ जायेगी देश में ....और आने वाले दिनों में देश पर संयम की मंदी का खतरा न मडराने लगे ......लेकिन एक बात तय है जिस दिन देश की जनता ने इस मंदी का सामना किया और ......आने वाले चुनाव में आपकी तरफ़ लपक पड़ी तो पी एम साहब !आपका सेसेक्स उसी दिन नीचे आ जाएगा और धरातल पर नजर आयेंगे .....और हा चुनाव आने वाला है इस लिए जनता को सब्र और संयम का पथ पड़ते रहिये .....ध्यान रखियेगा कही एन वक्त पर जनता के संयम का बाँध न टूट पड़े ....
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2 टिप्पणियां:
संयम का बाँध टूटेगा जरूर… अच्छा लिखा है शुभकामनायें
यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
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