मेरे एक पोस्ट पर भाई अमरेन्द्र जी की एक टिप्पडी इस कविता के रूप में आई जो मुझे अच्छी लगी इसे आपके लिए भी प्रस्तुत कर रहा हु
यह शोक का दिन नहीं,यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।यह युद्ध का आरंभ है,भारत और भारत-वासियों के विरुद्धहमला हुआ है।समूचा भारत और भारत-वासीहमलावरों के विरुद्धयुद्ध पर हैं।तब तक युद्ध पर हैं,जब तक आतंकवाद के विरुद्धहासिल नहीं कर ली जातीअंतिम विजय । जब युद्ध होता हैतब ड्यूटी पर होता हैपूरा देश ।ड्यूटी में होता हैन कोई शोक औरन ही कोई हर्ष।बस होता है अहसासअपने कर्तव्य का। यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,वास्तविकता है।देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,एक कवि, एक चित्रकार,एक संवेदनशील व्यक्तित्वविश्वनाथ प्रताप सिंह चला गयालेकिन कहीं कोई शोक नही,हम नहीं मना सकते शोककोई भी शोकहम युद्ध पर हैं,हम ड्यूटी पर हैं।युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,कोई मुसलमान नहीं है,कोई मराठी, राजस्थानी,बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।हमारे अंदर बसे इन सभीसज्जनों/दुर्जनों कोकत्ल कर दिया गया है।हमें वक्त नहीं हैशोक का। हम सिर्फ भारतीय हैं, औरयुद्ध के मोर्चे पर हैंतब तक हैं जब तकविजय प्राप्त नहीं कर लेतेआतंकवाद पर।एक बार जीत लें, युद्धविजय प्राप्त कर लेंशत्रु पर।फिर देखेंगेकौन बचा है? औरखेत रहा है कौन ?कौन कौन इस बीचकभी न आने के लिए चला गयाजीवन यात्रा छोड़ कर।हम तभी याद करेंगेहमारे शहीदों को,हम तभी याद करेंगेअपने बिछुड़ों को।तभी मना लेंगे हम शोक,एक साथविजय की खुशी के साथ। याद रहे एक भी आंसूछलके नहीं आँख से, तब तकजब तक जारी है युद्ध।आंसू जो गिरा एक भी, तोशत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।इसे कविता न समझेंयह कविता नहीं,बयान है युद्ध की घोषणा कायुद्ध में कविता नहीं होती।चिपकाया जाए इसेहर चौराहा, नुक्कड़ परमोहल्ला और हर खंबे परहर ब्लाग परहर एक ब्लाग पर।- कविता वाचक्नवी साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
November 28, 2008 10:53
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