एक सज्जन मुझसे बहुत दिनों के बाद टकराए |हॉल-चाल के बाद बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा |वे भी राजनीती में थोडी बहुत जोर आजमाइश करते है तो मुझे भी राजनितिक गप्पबाजी (अपने शब्दों में कहे तो चिंतन )की आदत है और जब से मीडिया से जुडा तब से तो यह और हावी हो गया |खैर , हम दोनों जब भी मिलते है तो थोडी बहुत राजनितिक गप्पबाजी हो जाती है |
इस बार हमारी निगाह पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बदल पर पड़ी |
जनाब ने कहा -भाई मजा तो राजनीती में ही है ,देखो अपने पंजाब दा पुतर प्रकाश भाई को ,क्या कलेजा रखता है जवान एक ही झटके में बेटा को उपमुख्यमंत्री बना डाला ,है कोई माई का लाल जो उंगली उठा सके |न उसके दल ने रोका और नही उसको समर्थन दे रहे पीएम इन वेटिंग वालों ने |रोकते भी तो कैसे ?सिर पर लोकसभा चुनाव जो है |
मैंने कहा -हा भई, बात तो सही है |वो कुछ भई कर सकते है उनका नाम भई तो देखो -उनके नाम में सिंह और बादल दोनों है |कहते है जो बादल गरजते है वो बरसते नही है लेकिन यहाँ तो यह है की वह सिंह की तरह गरजते भी है और बादल है तो बरसते भी |मुझे लगता है अपने दल वाले इसलिए नही बोले होंगे क्योकि वे सिंह जो ठहरे |भई जंगल का राजा तो सिंह ही होता है न |हुकूमत तो उसी की चलेगी ....और पीएम इन वेटिंग वालों ने सोचा होगा की कही ये बादल येन वक्त पर बरस गया तो हमारें बने बनाये नक्शे पर पानी फ़िर जाएगा और हम वेटिंग में ही रह जायेंगे |सो भई बड़ा पद पाने के लिए छोटा त्याग तो करना ही पड़ेगा न |इसलिए बना लो भाई बेटे को उपमुख्यमंत्री भी बना लो |
तभी बीच में वे बोल पड़े -लेकिन भाई एक कमी रह गई बाप मुख्यमंत्री ,बेटा उपमुख्यमंत्री लेकिन मम्मी को कोई पद नही दिया ....
मैंने कहा घबराओ नही यदि यह बादल फिर गरजा तो इसे महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक दिन मम्मी को भी गृह मंत्रालय की कमान सौप दी जायेगी और एसा ही चलता रहा तो पुरा खानदान मंत्री बन कर घूमता नजर आएगा ...पुरी सरकार में सिर्फ़ सिंह बादल ..सिंह बादल प्रकाशित (चमकते ) नजर आयेंगे |
शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
डॉक्टर अमरेन्द्र कुमार सेंगर ने कहा
मेरे एक पोस्ट पर भाई अमरेन्द्र जी की एक टिप्पडी इस कविता के रूप में आई जो मुझे अच्छी लगी इसे आपके लिए भी प्रस्तुत कर रहा हु
यह शोक का दिन नहीं,यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।यह युद्ध का आरंभ है,भारत और भारत-वासियों के विरुद्धहमला हुआ है।समूचा भारत और भारत-वासीहमलावरों के विरुद्धयुद्ध पर हैं।तब तक युद्ध पर हैं,जब तक आतंकवाद के विरुद्धहासिल नहीं कर ली जातीअंतिम विजय । जब युद्ध होता हैतब ड्यूटी पर होता हैपूरा देश ।ड्यूटी में होता हैन कोई शोक औरन ही कोई हर्ष।बस होता है अहसासअपने कर्तव्य का। यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,वास्तविकता है।देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,एक कवि, एक चित्रकार,एक संवेदनशील व्यक्तित्वविश्वनाथ प्रताप सिंह चला गयालेकिन कहीं कोई शोक नही,हम नहीं मना सकते शोककोई भी शोकहम युद्ध पर हैं,हम ड्यूटी पर हैं।युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,कोई मुसलमान नहीं है,कोई मराठी, राजस्थानी,बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।हमारे अंदर बसे इन सभीसज्जनों/दुर्जनों कोकत्ल कर दिया गया है।हमें वक्त नहीं हैशोक का। हम सिर्फ भारतीय हैं, औरयुद्ध के मोर्चे पर हैंतब तक हैं जब तकविजय प्राप्त नहीं कर लेतेआतंकवाद पर।एक बार जीत लें, युद्धविजय प्राप्त कर लेंशत्रु पर।फिर देखेंगेकौन बचा है? औरखेत रहा है कौन ?कौन कौन इस बीचकभी न आने के लिए चला गयाजीवन यात्रा छोड़ कर।हम तभी याद करेंगेहमारे शहीदों को,हम तभी याद करेंगेअपने बिछुड़ों को।तभी मना लेंगे हम शोक,एक साथविजय की खुशी के साथ। याद रहे एक भी आंसूछलके नहीं आँख से, तब तकजब तक जारी है युद्ध।आंसू जो गिरा एक भी, तोशत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।इसे कविता न समझेंयह कविता नहीं,बयान है युद्ध की घोषणा कायुद्ध में कविता नहीं होती।चिपकाया जाए इसेहर चौराहा, नुक्कड़ परमोहल्ला और हर खंबे परहर ब्लाग परहर एक ब्लाग पर।- कविता वाचक्नवी साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
November 28, 2008 10:53
यह शोक का दिन नहीं,यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।यह युद्ध का आरंभ है,भारत और भारत-वासियों के विरुद्धहमला हुआ है।समूचा भारत और भारत-वासीहमलावरों के विरुद्धयुद्ध पर हैं।तब तक युद्ध पर हैं,जब तक आतंकवाद के विरुद्धहासिल नहीं कर ली जातीअंतिम विजय । जब युद्ध होता हैतब ड्यूटी पर होता हैपूरा देश ।ड्यूटी में होता हैन कोई शोक औरन ही कोई हर्ष।बस होता है अहसासअपने कर्तव्य का। यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,वास्तविकता है।देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,एक कवि, एक चित्रकार,एक संवेदनशील व्यक्तित्वविश्वनाथ प्रताप सिंह चला गयालेकिन कहीं कोई शोक नही,हम नहीं मना सकते शोककोई भी शोकहम युद्ध पर हैं,हम ड्यूटी पर हैं।युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,कोई मुसलमान नहीं है,कोई मराठी, राजस्थानी,बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।हमारे अंदर बसे इन सभीसज्जनों/दुर्जनों कोकत्ल कर दिया गया है।हमें वक्त नहीं हैशोक का। हम सिर्फ भारतीय हैं, औरयुद्ध के मोर्चे पर हैंतब तक हैं जब तकविजय प्राप्त नहीं कर लेतेआतंकवाद पर।एक बार जीत लें, युद्धविजय प्राप्त कर लेंशत्रु पर।फिर देखेंगेकौन बचा है? औरखेत रहा है कौन ?कौन कौन इस बीचकभी न आने के लिए चला गयाजीवन यात्रा छोड़ कर।हम तभी याद करेंगेहमारे शहीदों को,हम तभी याद करेंगेअपने बिछुड़ों को।तभी मना लेंगे हम शोक,एक साथविजय की खुशी के साथ। याद रहे एक भी आंसूछलके नहीं आँख से, तब तकजब तक जारी है युद्ध।आंसू जो गिरा एक भी, तोशत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।इसे कविता न समझेंयह कविता नहीं,बयान है युद्ध की घोषणा कायुद्ध में कविता नहीं होती।चिपकाया जाए इसेहर चौराहा, नुक्कड़ परमोहल्ला और हर खंबे परहर ब्लाग परहर एक ब्लाग पर।- कविता वाचक्नवी साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
November 28, 2008 10:53
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